Saturday, December 29, 2012

लड़की हूँ मैं

कहते हो मुझे तुम मां,
फिर क्यों दर्द देते हो,
अगर सम्मान करते हो,
तो फिर क्यों छेड़ा करते हो,
नजर आये कोई लड़की,
कहीं भी खुबसूरत सी,
हर उस लड़की को भला,
क्यों अपशब्द कहते हो,
कहते हो मुझे तुम कुछ,
दिल में कुछ और रखते हो,
करूँ विश्वास तुम पर तो,
हमेशा घात करते हो,
आज हालत है मेरी क्या ये,
खुद भी देख नहीं पाती,
किसी अपने पर भी में अब,
विश्वास कर नहीं पाती,
समझ आता नहीं ये अब,
गलत हूं मैं, या गलत हैं वो,
मुझे बर्बाद करके अब,
हँसते हैं मुझी पे जो,
गलती की थी मैंने क्या,
सजा जिसकी मैं पायी हूं,
या फिर लड़की होने का,
दर्द ही मैं पायी हूँ,
नहीं हूँ आज जहाँ में मैं,
तो करते हैं दुआ अब ये सब,
जहाँ भी जाऊं वहां पे मुझे,
ख़ुशी ही मिले हर पल बस,
देखती हूं मैं आज जिस तरफ,
हर जगह अच्छे लोग आते हैं नजर,
हर कोई कहते है इज्जत करो लड़कियों की,
फिर कहाँ हैं वो जो करते नहीं हमारी कदर,
आती है ये सोचकर मुझको हंसी,
की में भी कितनी मुर्ख और भोली हूँ,
भीड़ में छुपे हैं दरिन्दे इतने सारे फिर भी,
इस भीड़ को देखकर खुश हो ली हूँ,
फिर एक दर्द का एहसास मेरे जेहन में,
फिर से ताजा होने लगता है,
फिर से मज़बूरी और डर से,
मेरा दिल सहम सा जाता है,
मासूम लड़कियों को देखकर,
उन पर तरस आता है,
कुछ कर नहीं सकती मैं,
क्योंकि मैं तो अब लाचार हूँ,
जब सीखा जिन्दगी का सबसे बड़ा सबक,
तो मैं जिन्दगी से लाचार हूँ.
कोई नहीं हैं विश्वाश करने लायक,
बस खुद पर ही भरोसा कर सकते हैं,
दिखते हैं जो अभी इंसान जैसे,
वो कभी भी जानवर से भी बुरे बन सकते हैं,
पर ये बदलेगा नहीं कभी भी शायद,
क्योंकि उनकी सोच बदल सकती नहीं,
आज भी वो समझते है लड़कियों को,
मनोरंजन की जैसे चीज कोई,
पर गलती शायद हमारी भी है,
हमने उनकी इस सोच को माना जो है,
वो जो कहते गए हम करते गए,
वो कहते हैं उनसे ये जमाना जो है,
अगर पाना है इज्जत तो सर अब उठाना पड़ेगा,
खुद पर हो रहे जुल्मो को अब,
खुद ही लड़कर हटाना पड़ेगा,
नहीं तो फिर से किसी की इज्जत लुटती रहेगी,
और फिर से उसको कुछ मोमबत्ती,
कुछ सहानभूति और श्रद्धांजलि मिलती रहेगी |


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