कभी धूप खिली कभी छाँव चली,
बादल ने खेली लुका छुपी,
कभी ठंडी-ठंडी पवन चली,
कभी उमस भरी गर्मी है तपी।
मौसम है वारिश का आया,
दिन में भी आँधियरा छाया,
दिनकर के दिन मे सेंध लगा,
घन घनन घनन कर इतराया।
प्यासी सी धरा जो व्याकुल थी,
इस गरज को सुन है मुस्काई,
कुछ बूँद गिरीं, कुछ धूल उड़ी,
भीनी भीनी खुशबू छायी।
गुमसुम से तरु थे अर्से से,
देखकर पत्र जो गिरे हुए,
कुछ कली खिली, कुछ कुसुम खिले,
मीठे मीठे आँसू निकले।
दस्तक है सुहाने मौसम की,
कहते मन्ढूक टिटहरी हैं,
छूने दो तन इन बूँदों को,
हर रोम रोम यह कहरी हैं।