पता ना चला कब बड़े हो गये,
घुटनो के बल थे खड़े हो गये,
दुनिया ने ठोकर दी हमको ऐसी,
चले थे कहां और कहीं खो गये।
लगता था मंजिल बस सामने है,
होना बड़ा ही है मंजिल हमारी,
बचपन की ख्वाहिश इतनी सी थी कि,
आये त्वरित सी जवानी हमारी।
था सोचा जिएंगे मस्ती भरे दिन,
नहीं होगा कोई फिर टोकने को,
पता था नही कि ना मौका मिलेगा,
उलझती रहेगी बस जिन्दगी तो।
बची तो अभी भी ये जिन्दगी है,
जी लो जवानी बचपन के जैसे,
गुजर जायेंगे ये भी पल जिन्दगी के,
सुकूँ कीमती है, निरर्थक हैं पैसे।
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