Saturday, June 6, 2020

दस्तक है सुहाने मौसम की

कभी धूप खिली कभी छाँव चली,
बादल ने खेली लुका छुपी,
कभी ठंडी-ठंडी पवन चली,
कभी उमस भरी गर्मी है तपी।

मौसम है वारिश का आया,
दिन में भी आँधियरा छाया,
दिनकर के दिन मे सेंध लगा,
घन घनन घनन कर इतराया।

प्यासी सी धरा जो व्याकुल थी,
इस गरज को सुन है मुस्काई,
कुछ बूँद गिरीं, कुछ धूल उड़ी,
भीनी भीनी खुशबू छायी।

गुमसुम से तरु थे अर्से से,
देखकर पत्र जो गिरे हुए,
कुछ कली खिली, कुछ कुसुम खिले,
मीठे मीठे आँसू निकले।

दस्तक है सुहाने मौसम की,
कहते मन्ढूक टिटहरी हैं,
छूने दो तन इन बूँदों को,
हर रोम रोम यह कहरी हैं।

Monday, May 25, 2020

क्या मौका मिला है हमको

ये बहुत दिनों के बाद है,
बस कलम है और किताब है,
कुछ लिखने का अज मन है,
कुछ गुनगुन करते हम हैं,
कुछ दिल मे आती धुन है,
और वातावरण ये सुन है।

शुरुआत करुँ मैं कहाँ से,
समझ मुझे नहीं आता,
ये चुप सा नजारा बाहर,
है पता नहीं क्यों भाता।
कुछ थम सी गयी ये जिंदगी,
मुझको अच्छी लगती अब,
पर डर सा लगता है फिर,
ना जाने गुजर जाए पल कब।

मन में उलझन है मेरे 
कल हलचल का था कैसा,
वो अच्छा था या अब है,
जो होना चाहए जैसा।
आगे बढ़ने की धुन में,
क्या क्या खोया था हमने,
क्या मौका मिला है हमको,
वापस से सही सब करने।