Tuesday, January 27, 2015

लोगों का क्या है, वो कहते रहते हैं

लोगों का क्या है, वो कहते रहते हैं,
कुछ नहीं मिलता उनको जो इनकी सुनते हैं,
दुनिया लगी है आगे बढ़ने की होड़ में,
रह जाते पीछे जो कुछ अलग करने से डरते हैं । 

सवाल सैकड़ों उठा सकते हो तुम,
नहीं चाहते अगर कुछ भी करना,
बहाने बनाओगे कब तक यूँही,
नहीं करेगा और कोई पूरा तुम्हारा सपना। 

सवाल औरों का नहीं खुद का है,
मन में तुमने क्या ठान के रखा है,
द्रण प्रतिज्ञ होकर जो चलते है,
उन्होंने ही स्वाद सफलता का चखा है । 

मौका है अभी कुछ हासिल करने का,
आज गुजरा पल कल वापिस नही आएगा,
अगर सोते रहोगे बस सपने देखने के लिए,
सपनो को तुम्हारे कोई और ले जाएगा । 

आज सुनोगे उनकी जो रोकते हैं तुमको,
कल फिर यह वाकया सोचकर पछताओगे,
धूल धूसरित जब हो जाएंगे सपने तुम्हारे,
यही चेहरे तुम खुद पर हँसते हुए पाओगे । 

Monday, January 19, 2015

एक गलत राह

चारों ओर अँधेरा है,
डाला इसने डेरा है,
जाऊं अब किस ओर मैं,
शंका ने मन घेरा है । 

चाह रोशनी की मुझको ,
दिखती नहीं कहीं मगर,
निरत प्रयास करे है मन,
मिलती नहीं कोई डगर । 

करूँ मैं क्या यह सोचता,
निकलूं कैसे जाल से,
जितना करूँ प्रयास अब,
उतना ही ये कसे मुझे । 

उलझन के इस घेर में,
फसता ही जाये ये मन,
एक रास्ता चुना गलत,
चुनता गया गलत हर पल । 

यह राह ले गयी मुझे वहां,
जहाँ पहुँच खो दिया है सब कुछ,
सोचा था दुनिया होगी मेरी,
पर मिला मुझे एकाकी दुःख । 

मन में आया फिर यह विचार,
सोचा कि पीछे मुड़ जाऊं,
देखा पीछे तो कुछ न मिला,
अब जाऊं तो में कहाँ जाऊं । 

मन में फिर उठे सवाल कई,
मैं नहीं अकेला आया था,
थे कई लोग यहाँ साथ मेरे,
जिन्होंने मुझको उकसाया था । 

गए लोग कहाँ सोचा मैंने,
व्याकुल होकर दी एक पुकार,
बस गूँज सुनाई दी मुझको,
था छोड़ गया मुझको संसार । 

सीख मिली अब यह मुझको,
न करो गलत कभी जीवन में,
पर देर हो गयी है अब तो ,
फस गया हूँ उजड़े उपवन में। 

किरण दिखाई दे कोई,
या मिल जाए कोई लौ ही अब,
कुछ तो हो जिससे दिख जाए,
आया था जिससे रास्ता वह । 

पर बहुत देर हो चुकी है अब,
यह जानता हूँ मन ही मन में,
जो आता है यहाँ जाता नहीं,
गुम जाता है इस दलदल में।