Saturday, August 10, 2013

आकांक्षा



रोते हैं सभी कुछ पाने को,
जो मिलता वो कम हो जाता तब
जो ख्वाब अधूरे आज हैं वो,
कल जब पूरे हो जाते तब
कुछ और ख्वाब बन लेते हैं,
आकांक्षा बढ़ जाती बस तब,
कभी चुटकी भर को तरसते थे,
अब झोली भरकर बैठे हैं,
फिर भी संतुष्टि किसको है,
औरों का झपटने बैठे हैं,
खुद की ख़ुशी किस में है ये,
बिना जाने ढूंढते रहते हैं,
औरों की ख़ुशी भाती ही नहीं,
गम देकर खुश हो लेते हैं,
इंसान बनाया था बनाने वाले ने,
अब बस हैवान दिखाई देते हैं|