एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ,
मुझे ठोकर लगती रहती है,
पर फिर भी चलता जाता हूँ,
एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ।
ये दुनिया नहीं मेरे मतलब की,
ये खुदगर्जी में रहती है,
क्या पहचानेगी दर्द मेरे,
ये अपनी ख़ुशी बस तकती है,
बस इसीलिए मैं दुनिया से,
अपना हर दर्द छुपाता हूँ,
एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ।
ना ख़ुशी मेरी देखी जाती,
ये दुनिया की बेरहमी है,
जब दर्द में भी मैं हँसता हूँ,
बेचैन और भी होती यह ,
अब हँस न सकूँ, रो भी न सकूँ,
बस इसीलिए चुप रहता हूँ,
एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ।
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ,
मुझे ठोकर लगती रहती है,
पर फिर भी चलता जाता हूँ,
एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ।
ये दुनिया नहीं मेरे मतलब की,
ये खुदगर्जी में रहती है,
क्या पहचानेगी दर्द मेरे,
ये अपनी ख़ुशी बस तकती है,
बस इसीलिए मैं दुनिया से,
अपना हर दर्द छुपाता हूँ,
एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ।
ना ख़ुशी मेरी देखी जाती,
ये दुनिया की बेरहमी है,
जब दर्द में भी मैं हँसता हूँ,
बेचैन और भी होती यह ,
अब हँस न सकूँ, रो भी न सकूँ,
बस इसीलिए चुप रहता हूँ,
एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ।