Friday, March 27, 2015

एक अकेला राही हूँ

एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ,
मुझे ठोकर लगती रहती है,
पर फिर भी चलता जाता हूँ,
एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ। 

ये दुनिया नहीं मेरे मतलब की,
ये खुदगर्जी में रहती है,
क्या पहचानेगी दर्द मेरे,
ये अपनी ख़ुशी बस तकती है,
बस इसीलिए मैं दुनिया से,
अपना हर दर्द छुपाता हूँ,
एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ।

ना ख़ुशी मेरी देखी जाती,

ये दुनिया की बेरहमी है,
जब दर्द में भी मैं हँसता हूँ,
बेचैन और भी होती यह ,
अब हँस न सकूँ, रो भी न सकूँ,
बस इसीलिए चुप रहता हूँ,
एक अकेला राही हूँ,
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ।

Monday, March 23, 2015

फिर नए ख्वाबों को

जिंदगी हमसे अभी, रूठी सी है तो क्या हुआ ,
विश्वास है कि एक दिन, हम उसे मना लेंगे । 
ख्वाब सारे आज, बिखरे से हैं तो क्या हुआ,
फिर नए ख्वाबों को, हम शौक से सजा लेंगे। 
मुश्किलें राहों में आती हैं , अगर तो आने दो,
दुनिया गर टकराये हमसे, तो उसे टकराने दो,
हैं नहीं साथी कोई, इन रास्तों में क्या हुआ,
रास्तों को ही अपना, हमसफ़र बना लेंगे । 
कहने को तो मिलते हैं, साथी बहुत इस राह में,
कहते हैं कि साथ हैं, वो धूप में और छाँव में,
छोड़ देते साथ वो, कठिनाई में तो क्या हुआ,
हर उसी कठिनाई को, हम ख़ाक में मिला देंगे। 
डरती है करने से श्रम दुनिया, अगर तो डरने दो,
भाग्य पर चलती है दुनिया, तो भी उसको चलने दो,
पैर छिल जाएँ कटीली, राह में तो क्या हुआ,
इन कटीली राहों का भी, फूल सा मजा लेंगे। 
फिर नए ख्वाबों को, हम शौक से सजा लेंगे।

Sunday, March 15, 2015

कभी तो नजरों का न घुमाओ

बहुत डर लिया हालातों से तुमने,
कभी तो इनका सामना कर जाओ,
फेर के नजरें जियोगे कब तक,
कभी तो नजरों को न घुमाओ । 

कहने वाले तो मिलते हैं बहुत,
खो जाओगे ऐसे लोगों की भीड़ में,
खुद की पहचान जो बनाना है तो फिर,
कभी तो कुछ करके दिखाओ,
कभी तो नजरों को न घुमाओ । 

भाषण देने वाले तो मिलते हैं बहुत,
अमल करने वाले मिलते ही नहीं,
कहने की तो जरुरत ही नहीं, 
कभी बिना कहे सब कुछ करके दिखाओ,
कभी तो नजरों को न घुमाओ । 

दूसरों पर तरस खाते हैं बहुत,
पर वो सिर्फ कहने के लिए,
अगर समझते हो दर्द औरों का,
कभी तो दर्द बांटकर दिखाओ,
कभी तो नजरों को न घुमाओ ।

Friday, March 13, 2015

रहती हर पल मुस्कान है

कुछ पत्तों के मुरझाने से,
व्याकुल न कर तू निज मन को,
यह मौसम पतझड़ का जो है,
बस कुछ पल का मेहमान है। 

गर शोक करेगा तू ऐसे,
थोड़ा सा ही खोने से,
व्यर्थ करेगा तू जीवन ,
वक़्त का ये पैगाम है। 

कभी आये जीवन में पतझड़,
कभी सावन की है घटा घिरी,
जो अटल रहे हर मौसम में,
पाये वो सभी मुकाम है। 

जो न देखे क्या मौसम है,
और कष्ट के कुदरत न कोसे,
बस उसके ही निज चेहरे पर,
रहती हर पल मुस्कान है।

Tuesday, March 3, 2015

गलत राह चुनकर

नजर मंजिल पर नहीं, रास्तों पर करके देखो,
सही रास्ता जो चुनोगे तो मंजिल खुद ब खुद मिल जाएगी ।
देखते जो रहोगे बस मंजिल की तरफ,
दूर बहुत दूर वह मंजिल तुमसे चली जाएगी । 

सोचो एक बार कि मंजिल का मतलब क्या है,
अगर मंजिल है तो उसे क्या हासिल कर पाओगे?
जिसको कहते हो तुम आज अपनी मंजिल,
कल उसे हासिल कर कुछ और पाने को ललचाओगे। 

जीवन तो नाम है चलते रहने का,
अगर रुक गए कभी तो जीवन न रहेगा,
लगता है तुम्हे कि जिंदगी मंजिल पाने को है,
फिर एक दिन तुम्हारे जीवन का मतलब न रहेगा । 

मतलब इससे नहीं है की मंजिल मिली या नही,
जरुरी है कि किस रास्ते को चुनकर जाओगे,
गलत राह चुनकर जो पाओगे मंजिल अपनी,
तो सब कुछ पाकर भी कुछ भी नहीं तुम पाओगे ।