Tuesday, October 14, 2014

मंजिल का मिलना मुमकिन है

क्यों हार मानकर बैठे हो, 
इक कदम बढाकर देखो तुम,
अंगुल अंगुल बढ़ने से भी,
मंजिल का मिलना मुमकिन है। 

है राह जिंदगी की ऐसी,
ये कठिन परीक्षा लेती है,
हो निडर परीक्षा देने से,
सफलता मिलना मुमकिन है । 

ठोकर जो लगी इक पत्थर से,
रास्ता नहीं छोडो यूँ ही,
करने से प्रयास हटाने का,
पत्थर का हिलना मुमकिन है । 

जो अडिग चले मंजिल की ओर ,
वो सफल ही होकर है लौटे,
यूँ चलते ही बस रहने से,
हर कोना पाना  मुमकिन है । 

न सोचो छोटा सा है प्रयास,
पर्याप्त नहीं ये बिलकुल भी,
अंगुल अंगुल बढ़ने से भी,
मंजिल का मिलना मुमकिन है। 

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