Friday, December 5, 2014

यहाँ कोई कृष्ण भगवान नहीं

ये दुर्योधन की दुनिया है,
यहाँ तेरा कोई मान नहीं,
क्यों व्यर्थ पुकार करे है तू,
यहाँ कोई कृष्ण भगवान नहीं। 

वो दौर दूसरा ही था जब ,
पांडव बैठे थे होकर मूक,
अब वही तुझे धिक्कारे हैं,
जब भी कोई करता है "चूक"। 

क्यों भरोसा करती हो उस पर,
जिसने कभी तेरा साथ दिया,

जब तूने अग्नि परीक्षा दी,
फिर भी तेरा परित्याग किया।

यह घड़ी फैसले की है अब,
क्या सहती रहोगी अत्याचार,
अब उठो लड़ो, यह जंग तेरी,
तभी पाओगी अपना अधिकार ।

Friday, November 28, 2014

ढूँढोगे ख़ुशी गर छोटी छोटी बातों में

गम भी मिले तो भी सह लो ,
मुस्कुराते रहो जिंदगी के वास्ते,
कांटे और फूल मिलते हैं रहते,
आसान नहीं जिंदगी के रास्ते ।

कभी शोरगुल से भरी है जिंदगी,
कभी है इसमें गहरा सन्नाटा,
गुजर जाते पल हजारों कभी यूँही,
कभी एक पल जैसे थम सा जाता । 

मुस्कुराकर बिता लो पल जो मिले हैं,
ये जो गुजरे तो वापस न आएंगे,
करेंगे जो आज इनको बर्बाद फिर,
बाद में वो लोग बस पछतायेंगे। 

सोचोगे गर जिंदगी ने दिया नहीं कुछ भी,
कभी भी खुशियां नहीं तुम पाओगे,
ढूँढोगे ख़ुशी गर छोटी छोटी बातों में,
जीवन सारा खुशियों से भरा पाओगे ।

Monday, November 24, 2014

गर सीख ले कुछ इंसान अभी

खुशियां इंसान के जीवन में ,
बस कुछ पल की मेहमान हैं । 
है ख़ुशी आज जिस हाल में,
कल उसी में हम परेशान हैं । 

है रीत यही अभिलाषा की,
जो पूरी होती कभी नहीं,
जब भी पूरी हो जाती यह,
फिर से बढ़ जाती कई गुनी । 

लालच घर करके बैठा है,
मन में सभी इंसानों के,
जब पाएंगे पूरा ये जहाँ,
तभी प्रसन्न होंगे मन ये । 

जानवर हैं बेहतर हमसे तो,
जो चाहें वही जो जरुरी है,
होते जब उदर भरे इनके,
हिंसा से रखते दूरी ये। 

यह अच्छापन जानवरों का,
न भाता कभी इंसानों को,
मन को तसल्ली देते हैं,
कहकर जानवर "मनुज-हैवानों" को । 

गर सीख ले कुछ इंसान अभी,
थोड़ा सा कुछ जानवरों से,
नहीं मारेगा एक दूजे को,
नरभक्षी नहीं जो कोई है ।
 

Wednesday, October 22, 2014

मैं तो गँवार हूँ

कहते हैं सभी कि पिछड़ा हूँ मैं ,
तरक्की करते जमाने से बिछड़ा हूँ मैं,
क्योंकि मैं परंपरा की बीमारी से बीमार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ । 

नहीं जानता हूँ मैं कि होती क्या खुदगर्जी,
नहीं जानता मैं कि दी जाती कैसे मुस्कान फर्जी,
मैं तो भाईचारे की बीमारी से बीमार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ । 

कहते हैं क्या करोगे जानकर अपने पड़ोसी को,
कितनो को जानोगे, इस बढ़ती आबादी में। 
आज रफ़्तार से चलती है यह दुनिया,
रूककर नमस्ते करना वक़्त की बर्बादी है। 
पर क्या करूँ, मैं तो अपने उसूलों से लाचार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ । 

जब भी करता है गलती शहरी कोई,
लोग कहते हैं कि यह तो गंवार है,
यह गुजारिश है कि गाँव में आकर देखो,
कितना सभ्य होता हमारा व्यवहार है। 
बदलती दुनिया में आज अपनी पहचान का मोहताज हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ । 

Wednesday, October 15, 2014

ऐ भाग्य कोसने वालों

ऐ भाग्य कोसने वालों तुम, 
कभी देखे हैं क्या भाग्यहीन?
जो कठिन परिश्रम करते हैं, 
पर फिर भी रहते फल विहीन । 

ना देखो जो ना मिला तुम्हे, 
देखो है मिला क्या एक बार,
जो मिला वो है कितनो के पास, 
और कितने करते बस प्रयास । 

तुम हो उनमे जो पाये हैं, 
ये वजह है बस खुश होने की,
गर रोओगे इस क्षण में तुम, 
फिर मेहनत तुमने निरर्थक की । 

है मिली जिंदगी एक बार, 
ना व्यर्थ करो इसे रोने में,
ढूंढो मौके खुश होने के, 
है उम्र लगी जो संजोने में । 

गर रोओगे पाकर मौके,
तो होगी जिंदगी बस ग़मगीन,
ऐ भाग्य कोसने वालों तुम, 
कभी देखे हैं क्या भाग्यहीन?

Tuesday, October 14, 2014

मंजिल का मिलना मुमकिन है

क्यों हार मानकर बैठे हो, 
इक कदम बढाकर देखो तुम,
अंगुल अंगुल बढ़ने से भी,
मंजिल का मिलना मुमकिन है। 

है राह जिंदगी की ऐसी,
ये कठिन परीक्षा लेती है,
हो निडर परीक्षा देने से,
सफलता मिलना मुमकिन है । 

ठोकर जो लगी इक पत्थर से,
रास्ता नहीं छोडो यूँ ही,
करने से प्रयास हटाने का,
पत्थर का हिलना मुमकिन है । 

जो अडिग चले मंजिल की ओर ,
वो सफल ही होकर है लौटे,
यूँ चलते ही बस रहने से,
हर कोना पाना  मुमकिन है । 

न सोचो छोटा सा है प्रयास,
पर्याप्त नहीं ये बिलकुल भी,
अंगुल अंगुल बढ़ने से भी,
मंजिल का मिलना मुमकिन है। 

Friday, October 3, 2014

ये बस्ती है बेगानों की

ये बस्ती है बेगानों की, यहाँ मीत का मिलना मुश्किल है,
नफरत से भरी नजरों में यहाँ, कहीं प्रीत का मिलना मुश्किल है। 
ये बस्ती है बेगानों की.... 

मिलते हैं बहुत से लोग यहाँ, कुछ वादे करके जाते हैं,
यादों में रहते हैं फिर वो, पर वापस फिर ना आते हैं,
कोई वादे न तोड़े ऐसे,  इंसान का मिलना मुश्किल है.. 
ये बस्ती है बेगानों की.... 

परवाह नहीं है निज दुःख की, दूजों की ख़ुशी से जलते हैं,
जो मिलकर रहना चाहें उन्हें, करने को दूर मचलते हैं,
जहाँ बाँटें सभी ख़ुशी ऐसी, बस्ती का मिलना मुश्किल है… 
ये बस्ती है बेगानों की.... 

Thursday, September 25, 2014

मेरी जिंदगी मुझको इतना बता दे

मेरी जिंदगी मुझको इतना बता दे,
किये तूने क्यों मुझ पे इतने सितम। 
है मांगे थे बस मैंने दो पल ख़ुशी के,
दिए तूने मुझको बहुत सारे गम। 
मेरी जिंदगी मुझको इतना बता दे.… 


जहाँ देखूं दिखता है बस अब अँधेरा,
न जाने कभी होगा उजला सवेरा,
निगाहें मेरी रोशनी को ही तरसे,
मेरे दिल में खुशियों के अरमान बरसे,
जरा सा उजाला दिखा दे मुझे अब,
है कर दे मुझी पर अब इतना रहम । 
मेरी जिंदगी मुझको इतना बता दे.… 

लगता है जैसे है सपना कोई ये,
बिखरती नहीं पल में यूँ जिंदगी ये,
सुबह होगी फिर टूट जाएगा सपना,
ख़ुशी से भरा होगा जीवन ये अपना,
करूँ मैं प्रतीक्षा बस उस घड़ी की,
"हकीक़त" से जब होगा मेरा मिलन।
मेरी जिंदगी मुझको इतना बता दे.… 

Tuesday, September 16, 2014

मिलेगी इक दिन मंजिल तब

बस एक तकलीफ मिली तुमको,
और सर को पकड़ कर बैठ गए,
कहते थे पर्वत चढ़ जायेंगे ,
कंकड़ से फिसलकर हार गए। 

कहना आसान बहुत है मगर,
करने की जिद ही जरुरी है,
जो कहा अगर वो कर ना सके,
फिर यह जिंदगी अधूरी है। 

जो डर कर राहों से भटके,
नहीं जिकर कहीं भी है उनका,
जो डटे रहे और जीत गए,
अनुसरण करे दुनिया उनका। 

यह घड़ी फैसले की अब है,
जो करना होगा बस तुमको,
इस निर्णय पर निर्भर होगा,
क्या मिलेगा जीवन में तुमको। 

जो छोड़ दिया मंजिल का सफर,
गुमनामी के अँधेरे मिलेंगे बस,
गर हिम्मत करके बढ़ते रहे, 
फिर मिलेगी इक दिन मंजिल तब।

Thursday, September 11, 2014

जब कुदरत का कहर छाता है

कभी है सूखा तो कभी चारों तरफ बस पानी है,
लगता है मौसम ने जैसे की कोई बेईमानी है । 

कभी आस लगाये ताके किसान बादलों की ओर ,
कभी बोले अब बस करो भगवान नहीं चाहिए मुझे और,
कभी प्यासे पंछी प्राण गवाएं पथरीली जमीं पर,
कभी पशु बस डूब ही जाएँ खोके अपने जमीनी घर। 

प्रकृति का यह खेल अजब, विज्ञान भी अब समझ न पाये,
आज सूखे की आशंका, कल अतिवर्षा का ढिंढोरा बजवायें ।
तरक्की कर रहे हैं आज हम मशीनों पर निर्भर होकर,
और कर रहे हैं खिलवाड़ प्रकृति के साथ निर्भय होकर ।

अब असर इसी खिलवाड़ मौसम में नजर आता है,
जाड़े में होती बारिश, और सावन में सूखा आता है,
बार बार फिर भी भूल जाते हैं हम इस बात को, 
विज्ञान बस देखता है जब कुदरत का कहर छाता है ।

Friday, August 29, 2014

मंजिल का रास्ता

जिंदगी से थक कर हार मान लेने वालों,
कुछ न कर सकने का मन बनाकर क्या होगा !
इंतजार करते रहोगे खुशियों का बस तुम,
बोया नहीं कभी बीज फिर पौधा कैसे होगा!

रोते तो बहुत हैं, कठिनाई के वक़्त पर,
खुश हो जाते भाग्य से मिली फूटी कौड़ी पाकर,
पर सोचो कुछ खाकर गर बिताना हो दिन भर ,
फिर सूखी एक रोटी बस खाने से क्या होगा !

कुछ पाना है जीवन में, तो कुछ करना ही पड़ेगा,
मंजिल का रास्ता, पसीना बहाकर ही खुलेगा,
इन्तजार करते रहोगे दरवाजा खुद ही खुलने का,
फिर यह इन्तजार कभी भी ख़त्म ही नहीं होगा !

Thursday, August 21, 2014

इक फूल

इक फूल गिरा जो जमीं पर, और गिर कर फिर मुरझाया,
कोशिश तो की उसने लेकिन, फिर भी खिल ना पाया । 

फिर याद किया उसने अतीत, खिल उठा उसका चेहरा प्यारा,
सोचा उसने, है प्यार करता, उसको तो जहाँ यह सारा। 
मन में आया जब यह विचार, वो लगा ताकने राह की ओर,
निकलेगा जब कोई राही, तो प्यार मिलेगा उसे चहुँ ओर। 

आया एक राही निकल गया, न फूल पे उसकी नजर गयी,
मन उदास हुआ लेकिन सोचा, आएंगे उसके प्रेमी कई । 
दिन गुजर गया ऐसे पूरा, कई पथिक आये और गुजर गए,
ना देखा कोई उसकी ओर, बस ताके वो जहाँ थे फूल नए । 

साँझ ढले आया एक राही, फूल देखकर मुस्काया,
हुआ फूल प्रफुल्लित, कोई तो है, जो मुझे भुला ना पाया । 
जब रौंद के उसको निकल गया, वो प्रेमी नहीं दरिंदा था,
मुस्कान थी उसकी दानव सी, वासना का ही वो पुलिंदा था । 

संभाला खुद को फूल ने तब, सोचा कि गलती उसकी है,
ये दुनिया करती प्यार तब तक, जब तक सुंदरता झलकती है। 
दर्द भरे उस चेहरे पे, मुस्कान भरा एक भाव आया,
देर हुयी पर दुनिया का दस्तूर उसे अब समझ आया ।

Friday, August 15, 2014

यह दिवस कीर्तिगान करो

करते हैं कुछ भी क्योंकि आजाद हैं हम,
कोई टोके तो यह कहने में बेबाक में हैं हम,
याद दिलाने में अपने अधिकार हैं बहुत आगे,
पर कर्तव्यों का पूछो तो चुपचाप हैं हम ।

ऐसा नही कि दुनिया में बस हमारे पास ही आजादी है,
फिर भी बस खुद की मस्ती ही देखने के हम आदी हैं,
क्या पड़ेगा फर्क औरों पर हमारी करनी का,
सोचना यह लगता कि जैसे कोई बीमारी है । 

खाएंगे आज कस्में बहुत कुछ करने की आजादी के जश्न में,
कल से याद नहीं करेंगे उन कस्मों को कभी अपने स्वप्न में,
फिर अगले साल एक नया स्वाधीनता दिवस आएगा,
और यही झूठी कसमों का सिलसिला फिर से दोहराया जाएगा ।

गर आजादी है प्यारी तो, औरों की आजादी का सम्मान करो,
अपने हर कर्त्तव्य का, तहे दिल से निर्वाहन करो,
फिर पा सकोगे वो भारत, जिसका सपना हमने देखा था,
कर सकते हो गर यह, तो ही यह दिवस कीर्तिगान करो ।

Monday, August 11, 2014

लौ की जरुरत है

अँधेरे गलियारों में बैठोगे कब तक,
एक चिंगारी बस जलाकर तो देखो,
हारकर बैठकर गए तो मिलेगा क्या,
एक बार खुद को आजमा कर तो देखो। 

बैठे हैं कई किस्मत के पुजारी यहाँ,
पर सोचो कि ये लोग क्या हासिल कर पाते हैं,
जूठन कर्मियों का जो बच कर रह जाता हैं,
किस्मत से खाने वाले बस वही सब पाते हैं । 

कब तक कोसोगे भाग्य को अपने,
अँधेरे भरे इस जीवन के लिए,
चिराग नही जलता जीवन में यूँही,
लौ की जरुरत है उसके लिए । 

जिंदगी के दिये और कर्म के तेल से,
रोशन कर पार करना है दुनिया की सुरंग,
कर्म करोगे तो निकलोगे बाहर यहाँ से,
वरना रह जाओगे बस इसी में बंद । 
 

Thursday, August 7, 2014

बहुत अनमोल है जिंदगी

कभी आसान है तो कभी कठोर है जिंदगी,
पर कुछ भी हो बहुत अनमोल है जिंदगी,

मिलती नहीं यूँ ही किसी को,
रोने को इस जिंदगी पर,
मिलती है कुछ कर गुजरने को,
मुश्किल मिले कितनी भी पर,
रोने बाले लोग कभी कुछ करते नहीं,
करने बाले कभी मुश्किलों से डरते नहीं,

जो हार मान कर जाएँ बैठ,
हो जाए दुखी अपने हालातों पे,
उनके लिए अँधेरा घनघोर है जिंदगी ,
पर कुछ भी हो बहुत अनमोल है जिंदगी। 


आज जीते हो तो कुछ कर गुजर जाओं,
नाम हमेशा रहेगा बस आगे बढ़ जाओ,
पीछे जो रह गए तो बस झन्झोल है जिंदगी,
पर कुछ भी हो बहुत अनमोल है जिंदगी। 

Monday, August 4, 2014

मिली है मुझे मंजिल मेरी

हमसे कहा "कठिनाई" ने कि जीने नहीं देंगे तुझे,
हम कुछ न बोले बस हल्का सा मुस्कुरा दिए,
कहा उसने फिर कि नहीं है मजाक ये,
हम फिर से बस बत्तीसी दिखा दिए। 

बोला उसने फिर कि तुम्हे नहीं पता हूँ मैं क्या,
मैं हर किसी का जीना हराम करती हूँ,
मुझसे डर के रहो तो ही बचे रहोगे,
वरना मैं तो सबको बर्बाद करती हूँ । 

सुनकर हम मुस्कुराये और बोले उससे,
बैठकर यहाँ क्यों तुम डींगे भरती हो,
मैं डरूँगा तो नहीं तुमसे, ये सोच रखा है मैंने ,
क्यों करती नहीं वो जो तुम सदा करती हो। 

सुनकर कठिनाई तन्नाई और तेवर दिखाए ,
रास्ते में बहुत फिर कांटे भी बिछाए,
हम बस मुस्कुराये और कांटे हटाकर बोले,
इतने सुन्दर फूल तुमने कहाँ से पाये । 

सुनकर यह कठिनाई का चेहरा उतर गया,
और फिर मेरी राह से दफा हो गयी,
हम मंजिल पे जाकर खुद से बोले,
"कठिनाई" से मिली है मुझे मंजिल मेरी।

Sunday, August 3, 2014

रहे सलामत यारी ये

कुछ मिले और मिल कर बिछड़ गए,
कुछ बहुत दूर तक जाते हैं,
हैं मित्र वही इस दुनिया में,
कुछ पल पल साथ निभाते हैं। 

मिलते हैं बहुत इंसान यहाँ,
ये अंजानो का मेला है,
इस मेले में फिर भी लेकिन,
हर एक शख्स अकेला है । 

अहसास हो जब कि मिले मुझे,
कुछ अदद दोस्त इन राहों में,
खुशनुमा जिंदगी लगती तब,
बजता संगीत फिर कानों में । 

ये दुआ मेरी है अब रब से,
कि रहे सलामत यारी ये,
एक दिन भी न ऐसा आये,
मैं रहूं और न हो साथी मेरे !!

Thursday, July 31, 2014

क्यों भला अनजान बनते हो

तुम जो मुझसे मुस्कुराकर बात करते हो,
सच बताऊँ मेरे दिल पे घात करते हो,
मेरे दिल के चैन को यूँ लूटने वाले,
लूटकर भी क्यों भला अनजान बनते हो । 

देखकर तेरी हँसी अब चैन मिलता है ,
सोचकर ही बस तुझे अब दिल ये खिलता है,
हर अदा तेरी हमें बस मार डाले यूँ,
फिर भी तुझको देखने को दिल तरसता है । 

न मिलो जो तुम कभी तो चैन न आये,
बात तुमसे न करू तो दिल ये घबराए,
काश ऐसा हो की तुम बस पास हो हर पल, 
फिर बस तुमको नैन मेरे देखते जाए। 

लफ्ज़ तेरे लगते मुझको अब तो सरगम से,
खो मैं जाऊं जब तुम मुझसे बात करते हो,
जाते लुट जब देखते तेरी अदाकारी,
और लूटकर फिर तुम खुद पे नाज करते हो । 
मेरे दिल के चैन को यूँ लूटने वाले,
लूटकर भी क्यों भला अनजान बनते हो ।



Wednesday, July 30, 2014

मिले सुकून इस जीवन में

कुछ बात अलग तो है तुम में,
बस खुद की तुम पहचान करो,
जो सपने देखे हैं तुमने,
उन पर बस एक विचार करो। 

जो खोया तुमने जीवन में,
बस इन सपनो को पाने को,
क्यों व्यर्थ करोगे तुम अपने,
इन जीवन के अरमानों को। 

बस एक विफलता मिलने से,
जिंदगी ख़त्म हो जाती नहीं ,
जब एक राह हो जाए बंद,
दूसरी सदा है खुल जाती वहीं। 

निराश होकर जीवन में,
होता कुछ भी हासिल ही नहीं,
जो निरत परिश्रम करते हैं,
कभी दूर उनसे कुछ तो भी नहीं । 

बस एक जरुरत है तुमको,
कि जगे जूनून अब निज मन में,
फिर रुकना जाकर मंजिल पर,
तब मिले सुकून इस जीवन में ।

Monday, July 28, 2014

यादों की दास्ताँ

वक़्त यूँ ही गुजरता रहता है
लोग आते हैं, लोग जाते हैं ,
कुछ मिलते चंद लम्हों के लिए,
कुछ बहुत दूर तक साथ चलते हैं ,

यादों का एक सागर सा  है,
कुछ खट्टी और कुछ मीठी सी,
रूठता है जब दिल कभी भी,
लाती हैं ये होठो पे मुस्कान दबी सी,

काश इन यादों की अलग दुनिया हो,
जिसमे कभी भी जा पाएं हम,
गुजरे दिन फिर से जी सकें और,
हर पल में फिर से समां जाये हम,

यादों में यूँ तो खोये रहते हैं फिर भी,
हर पल दिल में कुछ कमी सी है,
दास्ताँ हैं यही इन यादों की ,
दिल के कोने में है फिर भी दूर सी हैं,…

Friday, July 25, 2014

गुमनाम सी ये जिंदगी

कभी धूप और कभी छाँव नहीं आसान है ये जिंदगी,
है राह ये अनजान और गुमनाम सी ये जिंदगी।

जाना चाहते हैं हम कहीं ले जाती ये हमें कहीं और,
नहीं जानते हैं की क्या क्या गुल खिलाती जिंदगी ।

कितना भी है सोचो कि हम क्या क्या करेंगे इन राहों में,
होता फिर भी है कुछ और क्योंकि यही है ये जिंदगी ।

जो हार जाए जिंदगी के हर नए अंदाज से,
हर मोड़ पर उसको सताती है सदा ये जिंदगी ।

जो झेलने से जिंदगी के पैंतरे डरते नहीं,
हर डगर पर सलाम उनको करती है ये जिंदगी ।

Tuesday, July 22, 2014

ठहर जाने का मन है

जिंदगी के इन सुहाने लम्हों में,
आज बस यूँ ही खो जाने का मन है,
यूँ तो बस गुजरती रहेगी ये जिंदगी,
आज लेकिन ठहर जाने का मन है। 

भाग लिए बहुत अपने सपनो के पीछे,
खो सा गया है चैन और सुकून,
होगा यही कल भी जानते हैं लेकिन,
फिर भी आज रुक सा जाने का मन है। 

पल जो गया आज वापस न आये,
जिंदगी का पहिया चलता ही जाए,
कुछ तो हों पल की याद रहें हमेशा,
ऐसे ही कुछ लम्हे बिताने का मन है । 

लबोँ पे मुस्कराहट आती है जब हम,
खो जाते बीते लम्हों में यूँ ही,
कम ना पड़े ऐसे लम्हे कभी भी,
बस इस वजह मुस्कुराने का मन है.…।

आज लेकिन ठहर जाने का मन है… 

Saturday, July 19, 2014

जिंदगी जुए का खेल नहीं

कर ली बहुत औरों की तरह बनने की कोशिश,
एक बार खुद की तरह जीकर तो देखो,
जिंदगी तुम्हारी किसी और की अमानत नहीं, 
खुद से कुछ कदम बढाकर तो देखो । 

क्या हो जायेगा गर गिर जाओगे एक बारी, 
सीख तब ही पाओगे अपने पैरों से चलना,
कब तक चलोगे दूसरों की वैशाखी के सहारे,
नहीं मिलता ऐसे कोई भी सपना ।

खुद से रास्ते बनाकर तो देखो,
फिर ही जिंदगी में सुकून मिलेगा,
चलते हैं बहुत दूसरों के बनाये रास्तों पे,
पर अपना मुकाम उन रास्तों पर कैसे मिलेगा । 

माना की मुश्किल है खुद से रास्ते बनाना,
ये हर किसी के हाथ का खेल नहीं,
जो इन मुश्किलों से टकराये वो ही पाये मंजिल ,
क्योंकि ये जिंदगी है कोई जुए का खेल नहीं ।

Wednesday, July 16, 2014

मंजिल फिर भी पायेगा

मुझसे हो नहीं सकता, गर तुम सोचते ये हो,
करोगे क्या जीवन में, अगर राहों से डरते हो,
राहें सोच में आसां, पर हैं ये बहुत मुश्किल,
मिलती ये हैं बस उनको, होता जो इनके काबिल । 

तेरी मंजिल तो है तेरी, कोई तुझे दे नहीं सकता,
चलेगा तू जो राहों पर, तू फिर क्या कर नहीं सकता,
ये मुश्किल से भरी राहें, तुझे विचलित है करने को,
अगर तू डर गया तो फिर, जीवन तेरा भर नहीं सकता ।

कहने को बहुत हैं यहाँ, साथी तेरे इन राहों में,
पर ये याद रख उनकी, मंजिल और ही कुछ है,
चलेगा साथ गर उनके, तेरी मंजिल का क्या होगा,
भूले तो जो मंजिल को, जीवन में फिर क्या सुख है । 

अभी भी वक़्त है भूलो, आसां रास्ते चुनना,
देखो दूर इन राहों पे, बस खाई ही खाई है,
चुनता जो ये रस्ते, बस आराम करने को,
मंजिल से अपनी फिर, भटकता हर वो राही है। 

तुझमे है लहू खौला, फिर क्यों जोश खोते हो,
पत्थर जो मिला पथ पर, कोशिश से हट जायेगा,
रखो जूनून निज मन में और बस हौसला थोड़ा,
काँटे हों भले कितने, मंजिल फिर भी पायेगा ।
 


Tuesday, July 15, 2014

सोचोगे तुम बस सपनों में

कुछ बात तो तुम में है कि तुम,
हर किसी से हटकर जीते हो,
क्या कहते हैं सब ये क्या करना,
औरों की क्यों तुम सुनते हो । 
कर सकते हो क्या तुम ये सवाल,
जाते क्यों पूछने दुनिया से,
हर प्रश्न उत्तरित होगा बस, 
पूछ कर देखो खुद के मन से ।  
है सोच यही इस दुनिया की,
औरों को खुश देख सकते नहीं,
पूछोगे गर इन लोगों से,
फिर मिलेंगे सपने कभी नहीं। 
मशविरा करो उन लोगों से,
जो खुश हो तुम्हारी खुशियों में,
पाओगे हर एक मंजिल जो,
सोचोगे तुम बस सपनों में ।




Sunday, June 8, 2014

इंसान नहीं कहलायेगा

कहते हैं कुछ, करते कुछ हैं,
ये दुनिया बड़ी निराली है । 
बस होंठ बड़े हैं मगर यहाँ,
दिल सबका बड़ा ही खाली है । 

परवाह नहीं है दुनिया की,
बस खुद की जेबें भरते हैं । 
दस्तूर अजब है दुनिया का,
कि फिर भी लोग तरसते हैं । 

देने को हाथ बढ़ते ही नहीं,
लेने को भीड़ यहाँ भारी हैं ।
पैसों से बनी इस दुनिया में,
हर एक सख्स भिखारी है । 

है वक़्त अभी कि बदलें हम,
वरना एक दिन ऐसा आएगा । 
जब मदद नाम का शब्द कभी,
इतिहास में लिखा जायेगा । 

इंसान वही जो परहित कर,
खुद्गिरी से ऊपर उठ पाए । 
बस लेने वालों का ये झुण्ड,
इंसान नहीं कहलायेगा ।


खुद ही यहाँ मिट जायेंगे

ये रास्ते हैं अनजाने से,
है अजब मोड़ से भरे हुए
ना देखा हमने, ना ही जाना,
हर पथ क्या समेटे किसके लिए 
गुमनाम सी इन राहों में,
चले जा रहे हम हर पल,
जाने को चाहें हम कहीं और
पहुँच जाते मंजिल एक अलग,
इन राहों से टकराने का
बस एक नतीजा मिलता है 
बिखर गया जीवन उसका,
जो राह तोड़ कर चलता है 
ये राह जिंदगी की ऐसी,
कुछ नए रास्ते बनते हैं,
ये नए रास्ते बनाने को,
संघर्ष मनुज ही करते हैं ।
प्रकाश बनो या बनो शिला,
ये राह नहीं मिट पायेगी 
जो मिटाने बैठे इन राहों,
वो खुद ही यहाँ मिट जायेंगे

Saturday, January 18, 2014

तेरा मिलना

कोई लम्हा चुरा लूं दिल मेरा कहता रहे हर पल,
ना जाने फिर तेरा दीदार कब होगा ये जानूं ना । 
बस तेरे लिए ही दिल मेरा बेचैन कितना है,
बताऊँ कैसे ये तुझको, लफ्ज़ कर सकते नहीं ये बयां । 

आँखें बंद करता हूँ तो दिखता बस तेरा चेहरा,
आँखें खोलना का इसलिए अब मन नहीं होता । 
तेरी यादों में जीता हूँ, यादें साथ रहती हैं,
तेरा मिलना तो सालों में बस कुछ पल का है होता

 
तेरे मिलने की ख़ुशी होती है बहुत दिल को,
मगर कोशिश ये करता हूँ, मिलूं तुझसे कभी अब ना,
ऐसा है नहीं कि चाहता तुझको नहीं अब दिल,
मगर मिलकर बिछड़ने का गम मुझसे सहन नहीं होता ।