Friday, August 29, 2014

मंजिल का रास्ता

जिंदगी से थक कर हार मान लेने वालों,
कुछ न कर सकने का मन बनाकर क्या होगा !
इंतजार करते रहोगे खुशियों का बस तुम,
बोया नहीं कभी बीज फिर पौधा कैसे होगा!

रोते तो बहुत हैं, कठिनाई के वक़्त पर,
खुश हो जाते भाग्य से मिली फूटी कौड़ी पाकर,
पर सोचो कुछ खाकर गर बिताना हो दिन भर ,
फिर सूखी एक रोटी बस खाने से क्या होगा !

कुछ पाना है जीवन में, तो कुछ करना ही पड़ेगा,
मंजिल का रास्ता, पसीना बहाकर ही खुलेगा,
इन्तजार करते रहोगे दरवाजा खुद ही खुलने का,
फिर यह इन्तजार कभी भी ख़त्म ही नहीं होगा !

Thursday, August 21, 2014

इक फूल

इक फूल गिरा जो जमीं पर, और गिर कर फिर मुरझाया,
कोशिश तो की उसने लेकिन, फिर भी खिल ना पाया । 

फिर याद किया उसने अतीत, खिल उठा उसका चेहरा प्यारा,
सोचा उसने, है प्यार करता, उसको तो जहाँ यह सारा। 
मन में आया जब यह विचार, वो लगा ताकने राह की ओर,
निकलेगा जब कोई राही, तो प्यार मिलेगा उसे चहुँ ओर। 

आया एक राही निकल गया, न फूल पे उसकी नजर गयी,
मन उदास हुआ लेकिन सोचा, आएंगे उसके प्रेमी कई । 
दिन गुजर गया ऐसे पूरा, कई पथिक आये और गुजर गए,
ना देखा कोई उसकी ओर, बस ताके वो जहाँ थे फूल नए । 

साँझ ढले आया एक राही, फूल देखकर मुस्काया,
हुआ फूल प्रफुल्लित, कोई तो है, जो मुझे भुला ना पाया । 
जब रौंद के उसको निकल गया, वो प्रेमी नहीं दरिंदा था,
मुस्कान थी उसकी दानव सी, वासना का ही वो पुलिंदा था । 

संभाला खुद को फूल ने तब, सोचा कि गलती उसकी है,
ये दुनिया करती प्यार तब तक, जब तक सुंदरता झलकती है। 
दर्द भरे उस चेहरे पे, मुस्कान भरा एक भाव आया,
देर हुयी पर दुनिया का दस्तूर उसे अब समझ आया ।

Friday, August 15, 2014

यह दिवस कीर्तिगान करो

करते हैं कुछ भी क्योंकि आजाद हैं हम,
कोई टोके तो यह कहने में बेबाक में हैं हम,
याद दिलाने में अपने अधिकार हैं बहुत आगे,
पर कर्तव्यों का पूछो तो चुपचाप हैं हम ।

ऐसा नही कि दुनिया में बस हमारे पास ही आजादी है,
फिर भी बस खुद की मस्ती ही देखने के हम आदी हैं,
क्या पड़ेगा फर्क औरों पर हमारी करनी का,
सोचना यह लगता कि जैसे कोई बीमारी है । 

खाएंगे आज कस्में बहुत कुछ करने की आजादी के जश्न में,
कल से याद नहीं करेंगे उन कस्मों को कभी अपने स्वप्न में,
फिर अगले साल एक नया स्वाधीनता दिवस आएगा,
और यही झूठी कसमों का सिलसिला फिर से दोहराया जाएगा ।

गर आजादी है प्यारी तो, औरों की आजादी का सम्मान करो,
अपने हर कर्त्तव्य का, तहे दिल से निर्वाहन करो,
फिर पा सकोगे वो भारत, जिसका सपना हमने देखा था,
कर सकते हो गर यह, तो ही यह दिवस कीर्तिगान करो ।

Monday, August 11, 2014

लौ की जरुरत है

अँधेरे गलियारों में बैठोगे कब तक,
एक चिंगारी बस जलाकर तो देखो,
हारकर बैठकर गए तो मिलेगा क्या,
एक बार खुद को आजमा कर तो देखो। 

बैठे हैं कई किस्मत के पुजारी यहाँ,
पर सोचो कि ये लोग क्या हासिल कर पाते हैं,
जूठन कर्मियों का जो बच कर रह जाता हैं,
किस्मत से खाने वाले बस वही सब पाते हैं । 

कब तक कोसोगे भाग्य को अपने,
अँधेरे भरे इस जीवन के लिए,
चिराग नही जलता जीवन में यूँही,
लौ की जरुरत है उसके लिए । 

जिंदगी के दिये और कर्म के तेल से,
रोशन कर पार करना है दुनिया की सुरंग,
कर्म करोगे तो निकलोगे बाहर यहाँ से,
वरना रह जाओगे बस इसी में बंद । 
 

Thursday, August 7, 2014

बहुत अनमोल है जिंदगी

कभी आसान है तो कभी कठोर है जिंदगी,
पर कुछ भी हो बहुत अनमोल है जिंदगी,

मिलती नहीं यूँ ही किसी को,
रोने को इस जिंदगी पर,
मिलती है कुछ कर गुजरने को,
मुश्किल मिले कितनी भी पर,
रोने बाले लोग कभी कुछ करते नहीं,
करने बाले कभी मुश्किलों से डरते नहीं,

जो हार मान कर जाएँ बैठ,
हो जाए दुखी अपने हालातों पे,
उनके लिए अँधेरा घनघोर है जिंदगी ,
पर कुछ भी हो बहुत अनमोल है जिंदगी। 


आज जीते हो तो कुछ कर गुजर जाओं,
नाम हमेशा रहेगा बस आगे बढ़ जाओ,
पीछे जो रह गए तो बस झन्झोल है जिंदगी,
पर कुछ भी हो बहुत अनमोल है जिंदगी। 

Monday, August 4, 2014

मिली है मुझे मंजिल मेरी

हमसे कहा "कठिनाई" ने कि जीने नहीं देंगे तुझे,
हम कुछ न बोले बस हल्का सा मुस्कुरा दिए,
कहा उसने फिर कि नहीं है मजाक ये,
हम फिर से बस बत्तीसी दिखा दिए। 

बोला उसने फिर कि तुम्हे नहीं पता हूँ मैं क्या,
मैं हर किसी का जीना हराम करती हूँ,
मुझसे डर के रहो तो ही बचे रहोगे,
वरना मैं तो सबको बर्बाद करती हूँ । 

सुनकर हम मुस्कुराये और बोले उससे,
बैठकर यहाँ क्यों तुम डींगे भरती हो,
मैं डरूँगा तो नहीं तुमसे, ये सोच रखा है मैंने ,
क्यों करती नहीं वो जो तुम सदा करती हो। 

सुनकर कठिनाई तन्नाई और तेवर दिखाए ,
रास्ते में बहुत फिर कांटे भी बिछाए,
हम बस मुस्कुराये और कांटे हटाकर बोले,
इतने सुन्दर फूल तुमने कहाँ से पाये । 

सुनकर यह कठिनाई का चेहरा उतर गया,
और फिर मेरी राह से दफा हो गयी,
हम मंजिल पे जाकर खुद से बोले,
"कठिनाई" से मिली है मुझे मंजिल मेरी।

Sunday, August 3, 2014

रहे सलामत यारी ये

कुछ मिले और मिल कर बिछड़ गए,
कुछ बहुत दूर तक जाते हैं,
हैं मित्र वही इस दुनिया में,
कुछ पल पल साथ निभाते हैं। 

मिलते हैं बहुत इंसान यहाँ,
ये अंजानो का मेला है,
इस मेले में फिर भी लेकिन,
हर एक शख्स अकेला है । 

अहसास हो जब कि मिले मुझे,
कुछ अदद दोस्त इन राहों में,
खुशनुमा जिंदगी लगती तब,
बजता संगीत फिर कानों में । 

ये दुआ मेरी है अब रब से,
कि रहे सलामत यारी ये,
एक दिन भी न ऐसा आये,
मैं रहूं और न हो साथी मेरे !!