Thursday, September 25, 2014

मेरी जिंदगी मुझको इतना बता दे

मेरी जिंदगी मुझको इतना बता दे,
किये तूने क्यों मुझ पे इतने सितम। 
है मांगे थे बस मैंने दो पल ख़ुशी के,
दिए तूने मुझको बहुत सारे गम। 
मेरी जिंदगी मुझको इतना बता दे.… 


जहाँ देखूं दिखता है बस अब अँधेरा,
न जाने कभी होगा उजला सवेरा,
निगाहें मेरी रोशनी को ही तरसे,
मेरे दिल में खुशियों के अरमान बरसे,
जरा सा उजाला दिखा दे मुझे अब,
है कर दे मुझी पर अब इतना रहम । 
मेरी जिंदगी मुझको इतना बता दे.… 

लगता है जैसे है सपना कोई ये,
बिखरती नहीं पल में यूँ जिंदगी ये,
सुबह होगी फिर टूट जाएगा सपना,
ख़ुशी से भरा होगा जीवन ये अपना,
करूँ मैं प्रतीक्षा बस उस घड़ी की,
"हकीक़त" से जब होगा मेरा मिलन।
मेरी जिंदगी मुझको इतना बता दे.… 

Tuesday, September 16, 2014

मिलेगी इक दिन मंजिल तब

बस एक तकलीफ मिली तुमको,
और सर को पकड़ कर बैठ गए,
कहते थे पर्वत चढ़ जायेंगे ,
कंकड़ से फिसलकर हार गए। 

कहना आसान बहुत है मगर,
करने की जिद ही जरुरी है,
जो कहा अगर वो कर ना सके,
फिर यह जिंदगी अधूरी है। 

जो डर कर राहों से भटके,
नहीं जिकर कहीं भी है उनका,
जो डटे रहे और जीत गए,
अनुसरण करे दुनिया उनका। 

यह घड़ी फैसले की अब है,
जो करना होगा बस तुमको,
इस निर्णय पर निर्भर होगा,
क्या मिलेगा जीवन में तुमको। 

जो छोड़ दिया मंजिल का सफर,
गुमनामी के अँधेरे मिलेंगे बस,
गर हिम्मत करके बढ़ते रहे, 
फिर मिलेगी इक दिन मंजिल तब।

Thursday, September 11, 2014

जब कुदरत का कहर छाता है

कभी है सूखा तो कभी चारों तरफ बस पानी है,
लगता है मौसम ने जैसे की कोई बेईमानी है । 

कभी आस लगाये ताके किसान बादलों की ओर ,
कभी बोले अब बस करो भगवान नहीं चाहिए मुझे और,
कभी प्यासे पंछी प्राण गवाएं पथरीली जमीं पर,
कभी पशु बस डूब ही जाएँ खोके अपने जमीनी घर। 

प्रकृति का यह खेल अजब, विज्ञान भी अब समझ न पाये,
आज सूखे की आशंका, कल अतिवर्षा का ढिंढोरा बजवायें ।
तरक्की कर रहे हैं आज हम मशीनों पर निर्भर होकर,
और कर रहे हैं खिलवाड़ प्रकृति के साथ निर्भय होकर ।

अब असर इसी खिलवाड़ मौसम में नजर आता है,
जाड़े में होती बारिश, और सावन में सूखा आता है,
बार बार फिर भी भूल जाते हैं हम इस बात को, 
विज्ञान बस देखता है जब कुदरत का कहर छाता है ।