Sunday, June 8, 2014

इंसान नहीं कहलायेगा

कहते हैं कुछ, करते कुछ हैं,
ये दुनिया बड़ी निराली है । 
बस होंठ बड़े हैं मगर यहाँ,
दिल सबका बड़ा ही खाली है । 

परवाह नहीं है दुनिया की,
बस खुद की जेबें भरते हैं । 
दस्तूर अजब है दुनिया का,
कि फिर भी लोग तरसते हैं । 

देने को हाथ बढ़ते ही नहीं,
लेने को भीड़ यहाँ भारी हैं ।
पैसों से बनी इस दुनिया में,
हर एक सख्स भिखारी है । 

है वक़्त अभी कि बदलें हम,
वरना एक दिन ऐसा आएगा । 
जब मदद नाम का शब्द कभी,
इतिहास में लिखा जायेगा । 

इंसान वही जो परहित कर,
खुद्गिरी से ऊपर उठ पाए । 
बस लेने वालों का ये झुण्ड,
इंसान नहीं कहलायेगा ।


खुद ही यहाँ मिट जायेंगे

ये रास्ते हैं अनजाने से,
है अजब मोड़ से भरे हुए
ना देखा हमने, ना ही जाना,
हर पथ क्या समेटे किसके लिए 
गुमनाम सी इन राहों में,
चले जा रहे हम हर पल,
जाने को चाहें हम कहीं और
पहुँच जाते मंजिल एक अलग,
इन राहों से टकराने का
बस एक नतीजा मिलता है 
बिखर गया जीवन उसका,
जो राह तोड़ कर चलता है 
ये राह जिंदगी की ऐसी,
कुछ नए रास्ते बनते हैं,
ये नए रास्ते बनाने को,
संघर्ष मनुज ही करते हैं ।
प्रकाश बनो या बनो शिला,
ये राह नहीं मिट पायेगी 
जो मिटाने बैठे इन राहों,
वो खुद ही यहाँ मिट जायेंगे