Tuesday, September 16, 2014

मिलेगी इक दिन मंजिल तब

बस एक तकलीफ मिली तुमको,
और सर को पकड़ कर बैठ गए,
कहते थे पर्वत चढ़ जायेंगे ,
कंकड़ से फिसलकर हार गए। 

कहना आसान बहुत है मगर,
करने की जिद ही जरुरी है,
जो कहा अगर वो कर ना सके,
फिर यह जिंदगी अधूरी है। 

जो डर कर राहों से भटके,
नहीं जिकर कहीं भी है उनका,
जो डटे रहे और जीत गए,
अनुसरण करे दुनिया उनका। 

यह घड़ी फैसले की अब है,
जो करना होगा बस तुमको,
इस निर्णय पर निर्भर होगा,
क्या मिलेगा जीवन में तुमको। 

जो छोड़ दिया मंजिल का सफर,
गुमनामी के अँधेरे मिलेंगे बस,
गर हिम्मत करके बढ़ते रहे, 
फिर मिलेगी इक दिन मंजिल तब।

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