कहते हैं सभी कि पिछड़ा हूँ मैं ,
तरक्की करते जमाने से बिछड़ा हूँ मैं,
क्योंकि मैं परंपरा की बीमारी से बीमार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ ।
नहीं जानता हूँ मैं कि होती क्या खुदगर्जी,
नहीं जानता मैं कि दी जाती कैसे मुस्कान फर्जी,
मैं तो भाईचारे की बीमारी से बीमार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ ।
कहते हैं क्या करोगे जानकर अपने पड़ोसी को,
कितनो को जानोगे, इस बढ़ती आबादी में।
आज रफ़्तार से चलती है यह दुनिया,
रूककर नमस्ते करना वक़्त की बर्बादी है।
पर क्या करूँ, मैं तो अपने उसूलों से लाचार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ ।
जब भी करता है गलती शहरी कोई,
लोग कहते हैं कि यह तो गंवार है,
यह गुजारिश है कि गाँव में आकर देखो,
कितना सभ्य होता हमारा व्यवहार है।
बदलती दुनिया में आज अपनी पहचान का मोहताज हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ ।
तरक्की करते जमाने से बिछड़ा हूँ मैं,
क्योंकि मैं परंपरा की बीमारी से बीमार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ ।
नहीं जानता हूँ मैं कि होती क्या खुदगर्जी,
नहीं जानता मैं कि दी जाती कैसे मुस्कान फर्जी,
मैं तो भाईचारे की बीमारी से बीमार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ ।
कहते हैं क्या करोगे जानकर अपने पड़ोसी को,
कितनो को जानोगे, इस बढ़ती आबादी में।
आज रफ़्तार से चलती है यह दुनिया,
रूककर नमस्ते करना वक़्त की बर्बादी है।
पर क्या करूँ, मैं तो अपने उसूलों से लाचार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ ।
जब भी करता है गलती शहरी कोई,
लोग कहते हैं कि यह तो गंवार है,
यह गुजारिश है कि गाँव में आकर देखो,
कितना सभ्य होता हमारा व्यवहार है।
बदलती दुनिया में आज अपनी पहचान का मोहताज हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ ।