Wednesday, October 22, 2014

मैं तो गँवार हूँ

कहते हैं सभी कि पिछड़ा हूँ मैं ,
तरक्की करते जमाने से बिछड़ा हूँ मैं,
क्योंकि मैं परंपरा की बीमारी से बीमार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ । 

नहीं जानता हूँ मैं कि होती क्या खुदगर्जी,
नहीं जानता मैं कि दी जाती कैसे मुस्कान फर्जी,
मैं तो भाईचारे की बीमारी से बीमार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ । 

कहते हैं क्या करोगे जानकर अपने पड़ोसी को,
कितनो को जानोगे, इस बढ़ती आबादी में। 
आज रफ़्तार से चलती है यह दुनिया,
रूककर नमस्ते करना वक़्त की बर्बादी है। 
पर क्या करूँ, मैं तो अपने उसूलों से लाचार हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ । 

जब भी करता है गलती शहरी कोई,
लोग कहते हैं कि यह तो गंवार है,
यह गुजारिश है कि गाँव में आकर देखो,
कितना सभ्य होता हमारा व्यवहार है। 
बदलती दुनिया में आज अपनी पहचान का मोहताज हूँ,
कहते हैं ये सभी कि मैं तो गँवार हूँ । 

Wednesday, October 15, 2014

ऐ भाग्य कोसने वालों

ऐ भाग्य कोसने वालों तुम, 
कभी देखे हैं क्या भाग्यहीन?
जो कठिन परिश्रम करते हैं, 
पर फिर भी रहते फल विहीन । 

ना देखो जो ना मिला तुम्हे, 
देखो है मिला क्या एक बार,
जो मिला वो है कितनो के पास, 
और कितने करते बस प्रयास । 

तुम हो उनमे जो पाये हैं, 
ये वजह है बस खुश होने की,
गर रोओगे इस क्षण में तुम, 
फिर मेहनत तुमने निरर्थक की । 

है मिली जिंदगी एक बार, 
ना व्यर्थ करो इसे रोने में,
ढूंढो मौके खुश होने के, 
है उम्र लगी जो संजोने में । 

गर रोओगे पाकर मौके,
तो होगी जिंदगी बस ग़मगीन,
ऐ भाग्य कोसने वालों तुम, 
कभी देखे हैं क्या भाग्यहीन?

Tuesday, October 14, 2014

मंजिल का मिलना मुमकिन है

क्यों हार मानकर बैठे हो, 
इक कदम बढाकर देखो तुम,
अंगुल अंगुल बढ़ने से भी,
मंजिल का मिलना मुमकिन है। 

है राह जिंदगी की ऐसी,
ये कठिन परीक्षा लेती है,
हो निडर परीक्षा देने से,
सफलता मिलना मुमकिन है । 

ठोकर जो लगी इक पत्थर से,
रास्ता नहीं छोडो यूँ ही,
करने से प्रयास हटाने का,
पत्थर का हिलना मुमकिन है । 

जो अडिग चले मंजिल की ओर ,
वो सफल ही होकर है लौटे,
यूँ चलते ही बस रहने से,
हर कोना पाना  मुमकिन है । 

न सोचो छोटा सा है प्रयास,
पर्याप्त नहीं ये बिलकुल भी,
अंगुल अंगुल बढ़ने से भी,
मंजिल का मिलना मुमकिन है। 

Friday, October 3, 2014

ये बस्ती है बेगानों की

ये बस्ती है बेगानों की, यहाँ मीत का मिलना मुश्किल है,
नफरत से भरी नजरों में यहाँ, कहीं प्रीत का मिलना मुश्किल है। 
ये बस्ती है बेगानों की.... 

मिलते हैं बहुत से लोग यहाँ, कुछ वादे करके जाते हैं,
यादों में रहते हैं फिर वो, पर वापस फिर ना आते हैं,
कोई वादे न तोड़े ऐसे,  इंसान का मिलना मुश्किल है.. 
ये बस्ती है बेगानों की.... 

परवाह नहीं है निज दुःख की, दूजों की ख़ुशी से जलते हैं,
जो मिलकर रहना चाहें उन्हें, करने को दूर मचलते हैं,
जहाँ बाँटें सभी ख़ुशी ऐसी, बस्ती का मिलना मुश्किल है… 
ये बस्ती है बेगानों की....