Sunday, April 5, 2015

सूनी सी इन आँखों ने

सूनी सी इन आँखों ने, सपने तो बहुत देखे हैं,
पर सपने तो बस सपने हैं, वो सच कहाँ होते हैं। 
आस राहों में लगाकर , तक के तो बैठे हैं,
थाम कर कोई हाथ चल दे, ऐसे लोग कहाँ होते हैं । 
सपने महलों के नहीं बस, एक पक्के घर की चाह है ,
रात को छत मिल जाए, ऐसे दिन कहाँ होते हैं । 
शाही खाने की उम्मीद नहीं, बस पेट भर की चाह है,
पर क्या करें हर रात को, खाली पेट ही हम सोते हैं। 
ख्वाब हम देखे नहीं,  बहुत पढ़ने लिखने के कभी, 
खुद का नाम लिखना सीखने की चाह में रोते हैं ।
आशा हमको है नहीं कि, पूछेंगे हमारी ख्वाहिशें,
बस गिनती हो हमारी, ऐसी आस हम संजोते हैं । 
सपना है कभी कि कुछ, बड़ा हम कर जायेंगे,
पर हक़ीक़त देखकर हम, भाग्य पर रोते हैं ।
सूनी सी इन आँखों ने, सपने तो बहुत देखे हैं,
पर सपने तो बस सपने हैं, वो सच कहाँ होते हैं।

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