सुनते आये हैं के देश के लिए जान दे दो,
पर सवाल मेरा है कि आखिर क्यों?
क्या दिया है उसने जो देती नहीं ये धरती,
जमीन बांटने का फिर शौक चढ़ा था क्यों?
कहते हैं बड़े कि धर्म का पालन करो,
उपवास रखो या फिर रोजे करो,
सिखाया क्या उसने जो इंसानियत नही सिखाती,
विचार बांटने का फिर शौक चढ़ा था क्यों?
भाषा का ईजाद किया तो खुश हो गए,
पर इतनी कि एक दूजे को समझ नही सकते,
बेहतर वो हैं जिनकी एक भाषा है,
फिर भी अपनी पीठ थपथपाते हैं क्यों?
सुना है कि इंसान महान प्राणी है,
सभी जानवरो से ये कहीं बेहतर है,
दिमाग चलाया तो बिना बात के लड़ने लगा,
इंसान होकर "टूटे" तो फिर महान क्यों?
देश,धर्म, भाषा सब एक जैसे हैं,
इंसान को इंसान से दूर करते हैं,
अगर एक होते तो इतने झगडे न होते,
फिर और बांटने की चाह हमें है क्यों?
पर सवाल मेरा है कि आखिर क्यों?
क्या दिया है उसने जो देती नहीं ये धरती,
जमीन बांटने का फिर शौक चढ़ा था क्यों?
कहते हैं बड़े कि धर्म का पालन करो,
उपवास रखो या फिर रोजे करो,
सिखाया क्या उसने जो इंसानियत नही सिखाती,
विचार बांटने का फिर शौक चढ़ा था क्यों?
भाषा का ईजाद किया तो खुश हो गए,
पर इतनी कि एक दूजे को समझ नही सकते,
बेहतर वो हैं जिनकी एक भाषा है,
फिर भी अपनी पीठ थपथपाते हैं क्यों?
सुना है कि इंसान महान प्राणी है,
सभी जानवरो से ये कहीं बेहतर है,
दिमाग चलाया तो बिना बात के लड़ने लगा,
इंसान होकर "टूटे" तो फिर महान क्यों?
देश,धर्म, भाषा सब एक जैसे हैं,
इंसान को इंसान से दूर करते हैं,
अगर एक होते तो इतने झगडे न होते,
फिर और बांटने की चाह हमें है क्यों?
No comments:
Post a Comment